संस्कृति और सेक्स के नाम पर इतनी गलतफहमियां! समाज ही रेपिस्ट तैयार कर रहा?
Author :- RAJESH SAHU
सवाल है कि रेप क्यों होते हैं?
- क्योंकि लड़कियां छोटे कपड़े पहनती हैं। नहीं।
- क्योंकि लड़कियां पुरुषों को अट्रैक्ट करती हैं। नहीं नहीं।
- क्योंकि लड़कियां रात में घूमने निकलती हैं। नहीं ये भी नहीं।
तो फिर क्यों? नहीं पता! चलिए हम बताते हैं आपको क्यों होते हैं रेप?
उत्तराखंड के नवनियुक्त सीएम तीरथ सिंह रावत एकबार हवाई यात्रा कर रहे थे उनके बगल एक महिला बैठी थी उन्होंने पूछा बहन जी कहां जा रही हैं? महिला ने कहा- दिल्ली जा रही हूं. मेरे पति जेएनयू में प्रोफेसर हैं और मैं खुद एक एनजीओ चलाती हूं।
बस इतनी सी बात ही तीरथ जी ने महिला से की। उसके बाद अपने दिमाग में तमाम ख्याल पाल लिए। उन्होंने कह दिया कि जो महिला फटी हुई जींस पहनती हो वह समाज में क्या संस्कृति फैलाती होगी। ये बयान सिर्फ मुंह से बक देने भर का नहीं है। बल्कि एक पूरी मानसिकता को दिखाता है जो सिर्फ सीएम तीरथ जी के भीतर नहीं है बल्कि देश के एक बड़े हिस्से के लोगों के भीतर बसी हुई है।
ये मानसिकता क्या है इसे पांच प्वाइंट में समझिए।
प्वाइंट नंबर- 1
असल में रेप ‘कल्चर’ की बात है। आम जीवन में सीखे गए व्यवहार की बात है। आप लाख कहें कि कोई भी समाज या संस्कृति रेप करने की इजाजत नहीं देती लेकिन सच्चाई यही है कि रेप कहने भर से रेप नहीं हो जाता। जब समाज की गालियों में, मजाक में, गॉसिप में, फिल्मों में, कहानियों में सेक्स से जुड़ी सैकड़ों गलतफहमियां पसरी हुई हैं तो समाज पुरुषों को एक पोटेंशियल रेपिस्ट के दौर पर ही तैयार कर रहा होता है। ऐसा नहीं है कि सारे पुरुष ऐसे हैं। कुछ लोगों में सहमति-असहमति समझने का विवेक विकसित हो जाता है। कुछ लोग महिलाओं का वास्तविक सम्मान करते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें मौका नहीं मिल पाता।
प्वाइंट नंबर — 2
बात मानसिकता की हो रही है इसलिए पिछले कुछ बयानों को याद करना जरूरी हो जाता है।
- लड़के हैं गलतियां हो जाती है।
- ताली दोनों हाथों से बजती है।
- रेप इसलिए होते हैं क्योंकि अब लड़कियां-लड़के इंटरैक्ट करती हैं।
- लड़कियां 15–16 साल की उम्र में हार्मोनल आउटबर्स्ट के कारण खुद को संभाल नहीं पाती।
मतलब ऐसे न जाने कितने बयान हैं जो इस बात के सबूत हैं कि पुरुषों ने महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध पर उन्हें ही दोषी ठहराया है।
पाइंट नंबर — 3
जब कोई इंसान किसी को नीचा दिखाने के लिए मां-बहन-बेटी से जुड़ी गालियां दे रहा होता है तो उसके भीतर एक पोटेंशियल रेपिस्ट बोल रहा होता है। ऐसी गालियों किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ सेक्स की कल्पना हो रही होती है। यही कल्पना रेप की कल्पना है। जब कोई इसके खिलाफ बोलना शुरु करता है तो एक बड़ा हिस्सा ही उनके खिलाफ खड़ा हो जाता है और उन्हें ही सलीके से रहने की हिदायत देना शुरु कर देता है। आप फेमिनिज्म या फिर आवाज उठाती महिलाओं को गलत साबित करने वाले तमाम लोगों को देखे ही होंगे।
प्वाइंट नंबर — 4
आखिर लड़कियों के कपड़ों पर ही आपका ध्यान आकर रुक क्यों जाता है। वक्त की मांग है कि उनके कपड़ों, उनके खाने-पीने, उनके घर से बाहर आने-जाने को लेकर पूर्वाग्रह से बाहर निकलें। महिलाओं को पुरुषों की तारीफ नहीं चाहिए। उन्हें इज्जत चाहिए। उन्हें किसी से कमतर और कमजोर न आंका जाए, महिलाएं चाहती हैं कि उन्हें हर वक्त मजबूत-मजबूत कहकर ये अहसास न करवाया जाए कि तुम कमजोर हो हम तुमको मजबूत बता रहे हैं। ममता की मूरत, दया का सागर, त्याग की प्रतिमूर्ति के नाम पर शोषण करना बंद कीजिए।
प्वाइंट नंबर — 5
दुनिया में कई ऐसे मानव समूह हैं जहां का समाज रेप मुक्त है। मैं फिर से कह रही हूं- रेप कल्चर की बात है। आम जीवन में सीखे गए व्यवहार की बात है। अपने आसपास देखेंगे तो पता लगेगा कि जेंडर असंवेदनशीलता कितना गंभीर खतरा बनती जा रही है। यही खतरा बड़ी संख्या में रेपिस्ट, मोलेस्टर और सेक्सुअल हरैसर पैदा कर रही है। किसी को नीचा दिखाने के लिए मां-बहन बेटी के नाम पर गाली देना बंद कीजिए। आप अगर ये सोचते हैं कि फांसी की सजा या फिर एनकाउंटर से महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हो जाएंगे तो आप गलत हैं इससे बुराई को सिर्फ काटा जा रहा है जबकि इसके जड़ पर वार करने की जरूरत है। इसलिए हर इंसान की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह खुद को संभाले।
यह भी पढ़ें — पिछड़ गए अमित शाह, ममता रेस में मीलों आगे! — बंगाल चुनाव ओपीनियन पोल