मुख्तार अंसारी की क्राइम हिस्ट्री, परिवार के कहने पर चलता तो नहीं बनता पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन

Moliitcs
11 min readApr 19, 2021

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- कौन है मुख्तार अंसारी?
- एक स्वतंत्रता सेनानी का पौत्र कैसे बन गया डॉन?
- गरीबों का मसीहा या सबसे बड़ा अपराधी?
- रास्ते में नहीं तो क्या जेल में होगी मुख्तार की हत्या?
- क्या कोर्ट और जांच एजेंसियां उसे नहीं दिलवा सकती सजा?

इन सभी सवालों के जवाब आज के इस आर्टिकल में हम विस्तार से बताएंगे। वेब सीरीज मिर्जापुर देखी होगी आपने। कालीन भैया को भी जानते होंगे। उनका धंधा, उनका रुतबा और उनका अपराध सबकुछ एकदम टॉप लेवल का हुआ करता था। कब किसे गोली मार दें, कब किसको धंधा सौंपकर राजा बना दे सबकुछ कालीन भैया के मूड पर डिपेंड करता था। जिधर गुजरते इलाका के लोग खड़े होकर सलामी देते। कालीन फिल्मी कैरेक्टर है। लेकिन मुख्तार अंसारी रियल कालीन भैया हैं। वैसे यहां थे भी कहा जा सकता है। जिधर से गुजरते थे उधर समर्थक दौड़ पड़ते थे, विरोधी घरों में घुस जाते थे। 18 लोगों की हत्याओं का केस चल रहा। 10 मुकदमे हत्या के प्रयास के चल रहे। गैंगस्टर एक्ट, टाडा, एनएसए, आर्म्स एक्ट व मकोका ऐक्ट भी लगा हुआ है। अपराध की दुनिया के सारे केस लगने के बावजूद मुख्तार पूर्वांचल के एक बड़े हिस्से में पूजे जाते हैं। उनके लिए इबादत की जाती है। ऐसा क्यों है हम इसे समझने की कोशिश करते हैं।

मुख्तार का परिवार

महात्मा गांधी जब देश की आजादी के लिए आंदोलन कर रहे थे उस वक्त मुख्तार अहमद अंसारी भी उनके साथ संघर्ष कर रहे थे। अहमद अंसारी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। न सिर्फ नेता बल्कि 1926–27 के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। ये कोई और नहीं बल्कि डॉन मुख्तार अंसारी के दादा थे। आजादी के महासंग्राम में सेना की तरफ से ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान लड़ाई लड़ रहे थे। जब देश आजाद हुुआ तो उस्मान को पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का प्रस्ताव आया उसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। कहा- लड़ा है इस देश के लिए तो मरेंगे भी इस देश के लिए। 1948 में वह शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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ब्रिगेडियर उस्मान डॉन मुख्तार अंसारी के नाना थे। मुख्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी सादगी पसंद व्यक्ति थे। कांग्रेस के नेता थे, मऊ समेत आसपास के जिलों में बड़ा सम्मान था। नगर पालिका के चुनाव में उतरे तो बाकी सारे प्रत्याशियों ने इनके सम्मान में अपना नाम वापस ले लिया। मुख्तार अंसारी के चाचा हामिद अंसारी देश के दो बार उपराष्ट्रपति रहे। अब आप देखिए। दादा ने महात्मा गांधी के साथ देश की लड़ाई लड़ी। नाना ने देश के लिए सेना की तरफ से दुश्मनों से लड़ा। पिता चुनाव में खड़े हुए तो बाकी लोग बैठ गए। चाचा देश में दो बार उप राष्ट्रपति रहे। इतने सम्पन्न परिवार से होने के बाद भी आखिर मुख्तार ने अपराध की दुनिया को क्यों चुना। क्या उसकी कोई मजबूरी थी या फिर हल्के मूड में आया और बाद में अपराध में ही मन लग गया।

पूर्वांचल में विकास की शुरुआत

अस्सी के दशक में यूपी की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एवं भारत सरकार ने पूर्वांचल का कायाकल्प करने के लिए तमाम योजनाओं की शुरुआत की। योजनाएं आई तो ठेकेदार भी सामने आने लगे। सरकारी ठेका हथियाने के लिए जितनी दबंगई इस वक्त चलती है ठीक वही दबंगई उस वक्त भी चलती थी। पूर्वांचल में दो गैंग थी। पहली मकनु सिंह की गैंग दूसरी साहिब सिंह की गैंग। नौजवान मुख्तार अंसारी अपने कॉलेज दोस्त साधु सिंह के साथ मकनु सिंह गैंग से था। मऊ जिले के ही सैदपुर में दोनो गैंग की ठेके संबंधित विवाद को लेकर भिड़ंत हुई यहीं से दोनो की राहें एकदम अलग हो गई। साहिब सिंह गैंग का सबसे खतरनाक खिलाड़ी था ब्रजेश सिंह। लेकिन इस विवाद के बाद उसने उस गैंग को छोड़ अपनी गैंग बना ली। ध्यान रहे उस वक्त ब्रजेश और मुख्तार में किसी तरह का कोई विवाद नहीं था लेकिन दो दशक बाद दोनो एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए। कहानी आगे बताने से पहले ब्रजेश का बैकग्राउंड जानना जरूरी है।

ब्रजेश का क्राइम की दुनिया में आगाज

ब्रजेश एक होनहार लड़का था। पढ़ाई से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती। इंटरमीडिएट फर्स्ट डिवीजन से पास करने के बाद सिंचाई विभाग में कार्यरत पिता रविंदर सिंह ने ब्रजेश को बनारस के यूपी कॉलेज में बीएससी में दाखिला दिलवा दिया। ब्रजेश बनारस में था तभी पता चला कि उसके पिता की स्थानीय गुंडे पांचू ने चाकू मारकर हत्या कर दी। यहां से उसका पढा़ई से मोहभंग हो गया। चूंकि पांचू गांव का ही था तो एकदिन ब्रजेश उसके घर गया. पांचू के पिता का पैर छुआ, साल भेंट की और पिस्टल निकाल कर गोली मार दी। इसी के साथ ब्रजेश का अपराध की दुनिया में श्रीगणेश हो गया। ब्रजेश के पिता की हत्या में ग्राम प्रधान ऱघुनाथ यादव भी शामिल था, एकदिन कचहरी में मामले की सुनवाई चल रही थी, ब्रजेश एके-47 के साथ वहां पहुंचा और भरी कचहरी में रघुनाथ को गोलियों से छलनी कर दिया। न सिर्फ पूर्वांचल में बल्कि पूरे यूपी में एके-४७ से हत्या का ये पहला मामला था। इसके बाद ब्रजेश पूर्वांचल का एक नामी डॉन बन गया। लोगो को जोड़ा और बना लिया गिरोह.

मुख्तार एवं ब्रजेश में विवाद की शुरुआत

ब्रजेश और मुख्तार के बीच यहां तक कोई खास विवाद नहीं था। लेकिन गैंग बढ़ाते-बढ़ाते ब्रजेश ने अपनी टीम में त्रिभुवन सिंह को शामिल कर लिया। त्रिभुवन उस वक्त मुख्तार का दुश्मन हुआ करता था। मुख्तार का दुश्मन, ब्रजेश का दोस्त। त्रिभुवन का दोस्त मुख्तार का दुश्मन। यहीं से शुरु होती है वर्चस्व की जंग। रेलवे का ठेका हो या शराब का। किडनैपिंग का मामला हो या फिर हत्याओं का। हम मामलें में दोनो ही एक दूसरे को पछाड़ने में लगे थे। साल 1988 में मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या कर दी गई। इस हत्या में नाम आया मुख्तार अंसारी का और साधु सिंह का। पुलिस खोजती रही लेकिन दोनो को खोज नहीं पाई। इसी दौरान बनारस पुलिस लाइन में कॉस्टेबल पद पर तैनात राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई। एकबार फिर से केस दर्ज हुआ मुख्तार अंसारी और साधु सिंह के खिलाफ। इस घटना ने ब्रजेश के खून को खौलाकर कर दिया।

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इस मामले में पुलिस ने साधु सिंह को गिरफ्तार किया। जब वह जेल में था तब उसकी पत्नी को अस्पताल में बच्चा हुआ। साधु सिंह पुलिस टीम के साथ पत्नी और बच्चों को देखने अस्पताल पहुंचा। पुलिस की वर्दी पहने व्यक्ति ने साधु सिंह पर गोली चलाई और अस्पताल के भीतर ही उसकी हत्या कर दी। जिस दिन ये हत्या हुई उस दिन साधु सिंह के गांव में उसकी मां एवं भाई समेत परिवार के आठ लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई। बताया जाता है कि पुलिस की वर्दी में आया हत्यारा कोई और नहीं बल्कि ब्रजेश सिंह ही था। साधु सिंह की हत्या के बाद लगा कि मुख्तार कमजोर हो जाएगा। हुआ भी। बताया जाता है कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया लेकिन तभी दो पुलिस वालों को गोली लगी और वह फरार हो गया।

गैंग्स ऑफ वासेपुर स्टाइल में मुठभेड़

ब्रजेेश और मुख्तार के बीच अब खुली जंग छिड़ गई थी। एकदम गैंग्स ऑफ वासेपुर की तरह। छोटी मोटी मुठभेड़ लगातार होने लगी। कभी इस पक्ष का एक गुर्गा मारा जाता तो कभी उस पक्ष का। कभी बड़ी मुठभेड़ हुई तो एक साथ तीन-चार गुर्गे भी मार दिए गए। इस दौरान पुलिस लाशे उठाने व पोस्टमार्टम करवाने के लिए थी। कहीं भी छापेमारी करने से पहले पता करती कि उक्त बदमाश किस गैंग का है। अगर ब्रजेश या मुख्तार गैंग का होता तो वह बचने की कोशिश करती। अगर जाती भी तो बड़े दल बल के साथ। ये सब चल ही रहा था कि मुख्तार को राजनीति का चस्का लगा। उसने मऊ विधानसभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया। अब चूंकि उसका रसूख इस लेवल पर था कि कोई पार्टी टिकट देने से मना ही नहीं कर सकती थी। सो मायावती ने भरोसा जताया और उसे प्रत्याशी बना दिया।

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मुख्तार ने भाजपा के विजय प्रताप सिंह को करीब 26 हजार वोटों से हरा दिया। यहां से मुख्तार की शक्ति में बेहिसाब इजाफा हो गया। जितनी उसकी शक्ति बढ़ी उतनी ही ब्रजेश की कम हो गई। अब ठेका लेने और दिलवाने में मुख्तार को किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं होती थी। चुनाव जीतने के बाद मुख्तार की छवि को रॉविनहुड में बदलने की कोशिश की जाने लगी। किसी की बेटी की शादी है तो आओ पैसा ले जाओ। किसी की तेरहवीं करनी है तो आओ पैसा ले जाओ। कचहरी में कोई काम रुका है तो फोन कर देते। यहां तक कि अगर कोई दूल्हा दहेज के लिए शादी से इंकार कर देता तो उसे भी उठवा लिया जाता था और उसकी शादी करवा दी जाती थी। ब्रजेश इन सबके बीच बदला लेने का मौका खोजता रहा। उसने तरीका बदला और राजनीति के जरिए ही पूर्वांचल के नए नवेले रॉबिनहुड को चुनौती देना तय किया।

कृष्णानंद राय की हत्या

गाजीपुर जिले की एक सीट है मोहम्मदाबाद। कहा जाता है कि यहां की राजनीति फाटक के अंदर शुरु होती है और वहीं खत्म होती है। इसी फाटक के पीछे लगता था मुख्तार अंसारी एवं उनके भाई अफजाल अंसारी का दरबार। ध्यान रहे मोहम्मदाबाद ही मुख्तार का पैतृक निवास है। 1985 से इस सीट पर अंसारी परिवार का ही कब्जा था। साल 2002 में अंसारी परिवार के अजेय रथ को रोकते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने जीत दर्ज की। कृष्णानंद ने अफजाल अंसारी को करीब 8 हजार वोटों से हराया। इस हार से मुख्तार अंसारी तिलमिला गया। इस तिलमिलाहट के दो कारण थे। या कहें दो शिकस्त थी एक चुनाव की दूसरी हमले की। साल 2001 में मुख्तार अंसारी के काफिले पर जोरदार हमला हुआ था। हालांकि मुख्तार को पहले खबर हो गई थी कि उसपर हमला हो सकता है इसलिए वह आगे वाली गाड़ी पर नहीं बैठा। उस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए थे। चुनाव हारने के बाद ये बदला लेने की कसक बढ़ गई।

25 नवंबर 2005 का दिन था। विधायक कृष्णानंद पास के ही गांव में एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्धाटन करने जा रहे थे। चूंकि पास के ही गांव में जाना था इसलिए उन्होंने अपनी बुलेट प्रूफ गाड़ी निकालने के बजाय नार्मल गाड़ी ही निकाली। क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्धाटन करके वहां से निकले ही थे की भांवरकोल की बसनिया पुलिस के पास सामने से एक सिल्वर ग्रे कलर की एसयूपी आकर खड़ी हो गई। विधायक कुछ समझ पाते उसके पहले ही एसयूवी से सात-आठ लोग उतरे और विधायक की गाड़ी पर फायरिंग झोक दी। फायरिंग किसी पिस्टल,कट्टा या रिवाल्वर से नहीं बल्कि एके-47 से हो रही थी। शरीर के साथ साथ पूरी गाड़ी छलनी हो गई। मौत का ये खेल काफी देर चला। कम से कम 500 राउंड फायर हुए। गुुंडो को भरोसा हो गया कि विधायक समेत सात लोग मर चुके हैं तब वह वहां से निकले। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई तो पता चला सात लोगों की बॉडी से 67 गोलियां मिली हैं। असल में ये सिर्फ एक हत्याकांड नहीं था बल्कि एक संदेश देने की कोशिश थी कि भाई से पंगा लेने पर ऐसी सजा मिलेगी की कलेजा कांप जाएगा।

इस हत्याकांड में विधायक कृष्णानंद राय के साथ पूर्व ब्लाक प्रमुख श्याम शंकर राय, भांवरकोल ब्लाक के मंडल अध्यक्ष रमेश राय, अखिलेश राय, शेषनाथ पटेल, मुन्ना यादव एवं उनके अंगरक्षक निर्भय नारायण उपाध्याय की हत्या की गई। इस हत्याकांड के बाद पूरा पूर्वांचल दहल उठा। विधायक के लोगों ने जमकर तोड़फोड़ एवं आगजनी की। विधायक की पत्नी अलका राय ने पति की हत्या के आरोप में बाहुबली मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी, अताहर रहमान उर्फ बाबू, संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा। फिरदौस एवं राकेश पांडेय पर मुकदमा दर्ज हुआ। चूंकि मामला हाई प्रोफाइल था इसलिए जिले के एसपी तक जांच करने से कतरा रहे थे। अलका राय सीबीआई जांच की मांग कर रही थी, सीबीआई भी इस केस को नहीं लेना चाहती थी। केस लिया तो कुछ दिन बाद दबाव बढ़ गया और उसने केस छोड़ दिया। अलका राय के दोबारा केस दर्ज करवाया और जांच शुरु हुई। लेकिन एक साल बाद ही इस घटना के एक मात्र चश्मदीद गवाह शशिकांत राय की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। बताया जाता है कि शशिकांत की भी हत्या की गई लेकिन जो अखबारों में जो खबर आई उसमें आत्महत्या करार दिया गया। इस तरह से न्याय की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई। मुख्तार के खिलाफ जांच चली, सबूतों के अभाव में सभी बाइज्जत बरी हो गए।

ब्रजेश की दोबारा वापसी

कृष्णानंद हत्याकांड में मुख्तार बरी जरूर हो गया लेकिन पिछले तमाम अपराधिक मामलों के चलते वह जेल में ही रहा। इसी बीच खबर 2008 में ओडिशा से ब्रजेश सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पहले बताया जा रहा था कि ब्रजेश सिंह भी मारा जा चुका है। लेकिन ऐसा नहीं था, ब्रजेश को जेल हुई तो वह जेल के भीतर से ही मानव समाज पार्टी में शामिल हो गया। चूंकि प्रदेश में बसपा की सरकार थी तो मुख्तार ने भी जेल के भीतर से ही बसपा का दामन थाम लिया। बसपा ने अंसारी की छवि को रॉबिनहुड बनाने पर जोर दिया। मायावती ने मंच से ही मुख्तार अंसारी को गरीबों को मसीहा बन दिया।

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2009 में बसपा ने मुख्तार को वाराणसी से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बना दिया। चुनाव हुआ और मुख्तार महज 17 हजार वोटों से हार गया। अजब ये कि इस चुनाव को मुख्तार ने जेल से ही हैंडल किया। पुलिस ने एकबार गाजीपुर की जेल में छापेमारी की तो पता चला कि मुख्तार की जिंदगी बाहर से भी ज्यादा आलीशान है। उसके लिए खाना बनाने वाले अलग से हैं। कमरे में टीवी, फ्रिज मौजूद है। प्रशासन हरकत में आया और उसने मुख्तार को गाजीपुर जेल से मथुरा जेल भेज दिया। जेल बदली लेकिन सुविधाओं में कोई कमी नहीं आई। मथुरा से कभी बांदा भेजा गया तो कभी फिर से गाजीपुर लौट आया।

सियासत और हत्या का क्रम जारी

राजनीति में नाम स्थापित करने के बाद भी मुख्तार की फितरत नहीं बदली। साल 2009 में एक कैटेगरी के बड़े ठेकेदार अजय प्रकाश सिंह उर्फ मन्ना की बाइक सवार बदमाशों ने दिनदहाड़े एके-47 से भून दिया। इस हत्याकांड का आरोप मुख्तार पर लगा। चूंकि मन्ना का मुनीम राम सिंह मौर्य इस मामले का चश्मदीद गवाह था, उसकी सुरक्षा को खतरा था इसलिए उसे एक गनर मिला था। साल भर के भीतर ही गाजीपुर के आरटीओ ऑफिस के पास मुनीम राम सिंह मौर्य और गनर सतीश को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इस मामले में मुख्तार अंसारी मुख्य आरोपी हैं. पुलिस चार्जशीट भी दायर कर चुकी है, उम्मीद है कि अगले तीन-चार महीने में कोर्ट का फैसला आ जाए।

मुख्तार पिछले करीब 14 सालों से यूपी की अलग-अलग जेलों में बंद है। 2018 में जब वह बांदा जेल में बंद था तो उसे हार्ट अटैक आया। तत्काल अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के बाद स्थिति समान्य हुई और दोबारा जेल भेज दिया गया। इसी दौरान मुख्तार की पत्नी अफ्सा अंसारी को भी हार्ट अटैक आया। वसूली के एक मामले में पंजाब पुलिस ने मुख्तार को हिरासत में ले लिया। जनवरी 2019 से वह पंजाब के रूप नगर जिले के रोपड़ जेल में बंद था। कोर्ट की अनुमति मिलने के बाद एकबार फिर से उसे यूपी के बांदा जेल में लाया गया है। तमाम लोग दुआएं कर रहे थे कि यूपी पुलिस एनकाउंटर कर दे तो बढ़िया रहे। असल में ऐसे लोगों को दुआओं का मतलब भी नहीं पता, दुआओं से इंसान की उम्र बढ़ती है मौत नहीं होती।

बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं बना इतना

मुख्तार बिना राजनीतिक संरक्षण के इतना बड़ा अपराधी नहीं बन सकता था। ये बात वह भी जानता था इसलिए उसने समय समय पर पार्टियों को बदला। सबसे अधिक संरक्षण उसे बसपा की सरकार ने दिया। मायावती का हाथ मुख्तार के सिर पर था। मुख्तार की सपा से नजदीकी बढ़ी भी तो उसे मायावती ने जल्दी से हाथ बढ़ाकर अपनी तरफ खींच लिया। शायद आपको पता हो कि मुख्तार ने तीन भाईयों के साथ कौमी एकता दल बनाई, उसका विलय सपा में करना चाहा तो अखिलेश यादव ने साफ मना कर दिया। इसके लिए चाचा शिवपाल से विवाद भी कर लिया लेकिन मुख्तार की पार्टी को अपने आप से दूर ही रखा।

मऊ, गाजीपुर, जौनपुर व बनारस में मुख्तार अंसारी के नाम का असर है। घुमा के कहें तो मुख्तार पूर्वांचल का एक बरगद है। जिसकी वजह से दूसरा कोई नाम बढ़ ही नहीं पाया। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियां जब भी पूर्वांचल में बढ़त का सोचती हैं वह मुख्तार के कंधे को चुनती हैं। मुख्तार का अपराध पार्टियों के लिए मायने नहीं रखता। फिलहाल मुख्तार इस समय व्हील चेयर पर है। बांदा जेल में है। परिवार को मुख्तार की जान की फिक्र है। भाई एवं सांसद अफजाल को लगता है कि योगी सरकार में उनका भाई जेल में भी सुरक्षित नहीं है। वहीं जेल प्रशासन पूरी सुरक्षा की बात कर रहा है। फिलहाल हम उम्मीद करेंगे की जेल के भीतर कोई अनहोनी न हो। देश में सजा देने के लिए कानून है।

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