पेट्रोल-डीजल के सहारे छप्पर फाड़ कमाई कर रही मोदी सरकार, क्या देशहित में चुप है जनता ?
ये देखो मोदी का खेल, महंगा राशन-महंगा तेल
देश में बढ़ती महंगाई को देखते हुए लोगों में बीजेपी के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है, बीते कुछ दिनों में लगातार जिस तरह से पेट्रोल-डीजल और गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी हुई है उससे साफ दिख रहा है कि बीजेपी आम आदमी के साथ खिलवाड़ कर रही है।
जिस वक्त PM नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस वक्त उन्होंने तत्कालीइन PM मनमोहन सिंह से अपील की थी कि जो पेट्रोल के दाम बढ़ाए गए हैं उसको वापस करें, सरकार में आने से पहले बीजेपी ने बड़े जोर-शोर से नारा दिया था कि बहुत हुई पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार!’, आज सरकार बनने के बाद मोदी जी अपना ही वादा भूल गए हैं। आज नरेंद्र मोदी सरकार में पेट्रोल-डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर हैं।
कांग्रेस है कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार?
बढ़ती कीमतों पर बोलने से कुछ बीजेपी नेता जब बच रहे थे तो PM नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘पिछली सरकारों ने देश के ऊर्जा आयात पर निर्भरता में कमी पर ध्यान दिया होता तो मध्यम वर्ग पर इतना बोझ नहीं बढ़ता’, वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बढ़ती कीमतों पर सफाई देते हुए कहा कि ‘सरकार का कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं है, तेल कंपनियां कच्चे तेल का आयात करती हैं।’ क्या ये दोनों तर्क सही हैं? करीब 8–9 साल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर चली गई थी तब भारत में पेट्रोल करीब 60 रु प्रति लीटर के हिसाब से मिलता था, पर यही कीमत पिछले वर्ष कोरोना महामारी की वजह से 20 डॉलर से भी नीचे आ गई तब ये कीमत काफी कम हो जानी चाहिए थी लेकिन यह 65–70 रु प्रति लीटर के भाव से ही बिक रहा था, हालात में अब जब सुधार हुआ और लॉकडाउन का ताला खुला तो यही कच्चा तेल करीब 52 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया तो तेल की कीमत 100रु के चक्कर काट रही।
यानी देखा जाए तो PM और वित्त मंत्री दोनों के बयान ही फर्जी हैं, वास्तव में पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव के हिसाब से तय नहीं होती है, गौर से देखा जाए तो इसमें केंद्र और राज्य सरकारों का हाथ होता है।
मुबारक: पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाला देश बना भारत
कच्चे तेल की कीमतें धड़ाम होने पर जनता को फायदा होना चाहिए पर ये फायदा केंद्र और राज्य सरकारों को होता है। जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं तो केंद्र तेल की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी में जबर्दस्त बढ़ोतरी करती है, कोरोना के वक्त बस यही हुआ था।
साल 2020 मार्च में इस टैक्स को 19.98 से बढ़ाकर 32.98 रु प्रति लीटर कर दिया गया था, इसी तरह डीजल पर 15.83 से बढ़ाकर 31.83 रु प्रति लीटर कर दिया गया था।
उदाहरण- डीजल के बेस प्राइस में अगर ढुलाई भाड़ा, एक्साइज ड्यूटी, वैट और डीलर कमीशन जोड़ा जाए तो यह समझ आएगा कि एक ग्राहक 60 फीसदी से ज्यादा टैक्स चुका रहा।
दाम बढ़ना ∝ चीजें महंगी होना
सरकार को भले ही छप्परफाड़ कमाई हो रही हो लेकिन डीजल-पेट्रोल का दाम बढ़ने का सीधा मतलब होता है कि चीजें महंगी हो जाना। विमानों का सफर महंगा होगा, ट्रक और ट्रैक्टर आज भी डीजल के भरोसे हैं, भारत में दो-तिहाई माल ढुलाई ट्रकों के जरिए होती है, कृषि संबंधी कई गतिविधियों के लिए डीजल जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक प्रगति में डीजल की अहम भूमिका है, ट्रांसपोर्ट चार्ज बढ़ने से चीजें महंगी होगी। सरकार की कमाई से आम इंसान को चोट पड़ती है।
मजबूरियों के चलते कम हुए दाम
जो काम जनता के विरोध-प्रदर्शन से नहीं हो पता वो काम कई बार नेताओं के राजनीतिक लाभ की संभावना से हो जाता है।भाजपा और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है, इस बीच CM ममता बनर्जी की सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले VAT में एक रुपये प्रति लीटर की कटौती करने का ऐलान किया है। असम सरकार ने भी 5 रुपये एडिश्नल टैक्स को हटा लिया, असम में भी चुनाव होने वाले हैं। राजस्थान और मेघालय में भी ग्राहकों को राहत मिली है।
चुनाव के पहले ये राज्य जनता को नाराज नहीं करना चाहते, यानी जब महंगाई बढ़े तो चुनाव का ऐलान कर दिया जाए।
अब महंगाई डायन नहीं विकास की अम्मा हो गई है
‘महंगाई डायन खाए जात है…’ गाने की इस लाइन का चुनावों में खूब इस्तेमाल होता है, 7 साल पहले प्रधानमंत्री मोदी से लेकर स्मृति ईरानी तक ने महंगाई के खिलाफ खूब नारे लगाए थे, गैस की क़ीमतें बढ़ने पर सिलेंडर लेकर प्रदर्शन की तसवीरें होती थीं, तब शोर मचाने वाली बीजेपी आज जनता का मुंह तक नहीं देख रही। कांग्रेस के समय ईंधन के दामों के खिलाफ सिने अभिनेताओं खासकर अमिताभ बच्चन व अक्षय कुमार ने ट्वीट किया था कि तेल 5–10 रुपये में बेचा जाए, लेकिन अब जब तेल 100 रु. के पार है तो ट्वीट नहीं कर रही। सबसे बड़ा सवाल तो योग गुरु बाबा रामदेव पर उठता है जो तब चिल्ला चिल्लाकर कहते थे कि बीजेपी के आने के बाद 35–40 रु. पेट्रोल डीजल मिलेगा लेकिन अब कह रहे कि थोड़ी साइकिल भी चलानी चाहिए।
“त्वाडा कुत्ता टॉमी, साडा कुत्ता कुत्ता” यूपीए सरकार में दाम 71 रुपये था तो शोर मचाती थी बीजेपी आज 100 पार पर पहुँच गया तो इसे देशहित और आत्मनिर्भरता का नाम दे दिया। अब अंधभक्त बिना कोई सवाल किए सीना चौड़ा कर के 100रु तेल खरीदेंगे।
2008 में BJP ने चलाई साइकिल, अब कांग्रेस मार रही पैडल, जनता कहां?
आसमान छूते दामों से पब्लिक को राहत भले ही न मिले, लेकिन सियासी विरोध हमेशा से तेज रहा है। जब केंद्र में कांग्रेस थी तब विपक्षी नेताओं ने साइकिल से मंत्रालय जाकर पेट्रोलियम पदार्थों के दामों की वृद्धि का विरोध किया था, लेकिन अब जब खुद सत्ता में बैठे हैं तो सायद साइकिल पंचर हो गई। मध्य प्रदेश में पेट्रोल के दाम कई जिलों में 100 रुपए के पार है, 12 साल पहले CM शिवराज ने साइकिल चलाई थी अब पूर्व CM दिग्विजय साइकिल चला रहे, इन सब के बीच जनता कहां है, नहीं पता। सायद जनता ट्विटर पर ट्वीट कर रही, सोचने की बात ये है कि पक्ष हो या विपक्ष सब अपनी राजनीति खेल रहे, अगर हम परेशान हैं तो प्रदर्शन भी खुद करना होगा और सवाल भी खुद उठाने होंगे।
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source: https://www.molitics.in/article/789/modi-govt-is-increasing-petrol-diesel-price-in-india