नोटबंदी, जीएसटी जैसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ रहे फेल, फिर मोदी सरकार के कृषि बिल पर कैसे भरोसा करे किसान?
2014 से पहले जब नई योजनाएं लागू की जाती थी तब उसे लेकर बहुत ढिंठोरा नहीं पीटा जाता था, उसकी सफलता असफलता उस योजना के लागू होने के बाद पता चलती थी, लेकिन 2014 भारतीय इतिहास का ऐतिहासिक साल रहा, सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद जो योजनाएं शुरु हुई वह सभी मास्टरस्ट्रोक कही गई। नोटबंदी को भाजपा ने मौद्रिक सुधार बताकर पेश किया, जीएसटी को कर सुधार, तालाबंदी को महामारी से बचाव के लिए मास्टरस्ट्रोक बताया गया, चौथा सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक कृषि कानून है, जिसे किसानों के लिए वरदान बताया जा रहा है।
सरकार के तमाम मास्टरस्ट्रोक सुधार के लिए ही होते हैं लेकिन सुधार किसका होता है और सुधरता कौन है ये सुधारक नहीं बताता। यहां तक कि जिसके लिए ये सुधार किए जा रहे हैं उसके प्रति भी इनकी कोई जवाबदेही नहीं होती। वह लाख विरोध करते हुए मर जाए लेकिन इनके कानों पर जू तक नहीं रेंगती। किसान एवं कॉरपोरेट की इस शिखर वार्ता में अब सरकार कहीं नहीं रही। उसने बाजार खोल दिए हैं। अब मनमर्जी चलेगी।
राज्यसभा में पारित इस कानून को लेकर तमाम विरोधाभास है, जैसे अगर सरकार की नियत साफ है तो मंडियो के बाहर होने वाली खरीद पर किसानों को एमएसपी की गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार कर रही है। मोदी जी कह जरूर रहे हैं लेकिन उनकी बातों पर कैसे भरोसा किया जाए, उन्होंने कहा था कि 2 करोड़ रोजगार हर साल मिलेंगे, लेकिन यहां तो नौकरी ही बचाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा था कि काले धन की वापसी होगी लेकिन यहां तो सफेद धन को भी लेकर तमाम लोग बाहर भाग गए।
सरकार के मुताबिक नए कानून के जरिए बिचौलियों को हटाया जाएगा, लेकिन किसान की फसल खरीद करने या उससे कॉन्ट्रैक्ट करने वाली प्राइवेट कंपनियां, अडानी या अंबनी को सरकार किस श्रेणी में रखती है, उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया? वही अगर टैक्स के रूप में मंडी की कमाई बंद हो जाएगी तो मंडिया कितने दिन तक चल सकेंगी भला? आखिर उन्हें कैसे बचाया रखा जा सकता है? डर ये भी है कि आगे चलकर रेलवे, टेलीकॉम की तरह क्या मंडियो का घाटा दिखाकर उन्हें निजी हाथों में नहीं सौप दिया जाएगा?
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020 के तहत किसी को भी कितनी भी तादाद में अनाज और खाद्यान की जमाखोरी करने की छूट देता है। यह अध्यादेश जिस कानून को हटाता है वह आवश्यक वस्तु कानून इसलिए था कि मुनाफाखोर सस्ते में खाद्यान खरीदकर उसे बाद में मंहगे दामों में न बेचे, लेकिन अब नए कानून के तहत वह कितना भी खाद्यान जमा कर लें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो सकती।
ऐसे ही तमाम सवाल हैं जो गले से उतरती ही नहीं। जिस देश में खेती पहले से ही अभूतपूर्व संकट की चपेट में है, 85 फीसदी किसान लघु या सीमांत किसान हैं. आधी से अधिक ग्रामीण आबादी भूमिहीन या खेत में मजदूर है, खेती किसानी में घाटे के चलते करीब 2 करोड़ लोगों ने खेती छोड़ दी, हर दिन दर्जनभर से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं उस देश में किसानों की बात सुने बिना ही कोई फैसला लेना न्यायोचित नहीं हो सकता है।
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