उच्च जाति का दबंग बंद कमरे में दलितों-आदिवासियों को प्रताड़ित करेगा तो नहीं लगेगा SC-ST एक्ट!

Moliitcs
4 min readNov 11, 2020

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देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट से एक ऐसी खबर सामने आई है जिससे दलितों-आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार बढ़ सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि SC-ST जाति के लोगों के खिलाफ अगर कोई व्यक्ति घर के भीतर अपमानजनक बातें करता हो या उसे अपमानित करता हो और यह बात किसी बाहरी व्यक्ति ने न सुनी हो तो SC-ST एक्ट नहीं लगेगा.

यानि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दलितों और आदिवासियों के खिलाफ की गई अपमानजनक बातें तभी SC-ST एक्ट के तहत आएंगी, जब यह खुलेआम समाज में होगा और घर के लोगों के अलावा मुहल्ले के लोग भी इसे देखेंगे. सिर्फ घर के लोग और रिश्तेदार गवाह नहीं माने जाएंगे.

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लेकिन कई बार ऐसा होता है कि दलित-आदिवासी मजदूरों को बंद कमरे में प्रताड़ना दी जाती है. उन्हें कोई सवर्ण जाति का व्यक्ति घर पर बुलाकर जलील करता है. भद्दी-भद्दी गालियां देता है. ऐसे मामलों में दलित-आदिवासी जाति के लोगों को शिकायत करने के लिए गवाह भी पेश करना होगा. गवाह ऐसा जो समाज का हो. मुहल्ले का हो. रिश्तेदार या घर-परिवार का आदमी नहीं चलेगा.

अब हम आपको लाइव लॉ की रिपोर्ट पढ़कर सुनाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जजों ने क्या कहा….

“स्वर्ण सिंह और अन्य बनाम राज्य का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि टिप्पणी किसी भवन के अंदर की गई है, लेकिन घर के कुछ सदस्य या रिश्तेदार-दोस्त हैं तो यह अपराध नहीं होगा क्योंकि यह सार्वजनिक दृष्टिकोण में नहीं है.”

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बता दें कि उत्तराखंड में एक दलित महिला को किसी व्यक्ति ने घर में घुसकर कथित तौर पर गाली दी थी. सुप्रीम कोर्ट में इसी पर सुनवाई चल रही थी. लेकिन पीड़ित महिला के पास कोई बाहरी गवाह नहीं था, इसलिए कोर्ट ने यह मुकदमा खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट के इस बयान पर कई दलित नेताओं ने सवाल भी खड़े किए. भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने कहा- फिर से SC-ST एक्ट को खत्म करने की साजिश की जा रही है. ये सब केंद्र सरकार के इशारे पर हो रहा है. सरकार न भूले की हम जिंदा कौम हैं. इसी तरह दलित एक्टिविस्ट हंसराज मीणा ने कहा कि अपमानित करने के इरादे को कैसे परिभाषित किया जा सकता है. जब कोई व्यक्ति उसकी जाति को लेकर ही अपमानित करता हो. तो ये था दलित नेताओं के बयान.

सच बात तो ये है कि सुप्रीम कोर्ट के इस बयान के बाद अब SC-ST एक्ट काफी कमजोर हो जाएगा. एक उदाहरण से समझिए. अगर आप अपने घर में बैठे हैं और कोई उच्च जाति का व्यक्ति किसी मामले में आपको धमकाने-गाली देने पहुंच जाए और किसी बाहरी व्यक्ति को इस बात की खबर न लगी हो तो आप कोर्ट के सामने झूठे साबित हो जाएंगे. आप लाख कहते रहें कि हमारे घरवालों के सामने उच्च जाति के लोगों ने गालियां दी, जातिसूचक शब्दों से अपमानित किये लेकिन कोर्ट आपकी बात नहीं सुनेगी. उसे तो अब गवाह चाहिए.

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जजों ने ऐसा बयान क्यों दिया? क्या सुप्रीम कोर्ट में कोई दलित-आदिवासी जज होता तो ऐसा ही बयान आता?

आपको हम एक रिपोर्ट दिखाते हैं. इस रिपोर्ट से आप जानेंगे कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दलित और आदिवासी जजों की संख्या कितनी है. हमारे न्यायतंत्र में दलितों और आदिवासियों की क्या सहभागिता है?

“देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में केवल एक दलित जज हैं, ओबीसी के मात्र 2 जज हैं और आदिवासी जजों की तो नियुक्ति ही नहीं हुई है. वहीं 31 जजों में से 12 जज ब्राह्मण जाति से हैं. कायस्थ और नॉन ओबीसी यानि मराठा, रेड्डी जाति से 4–4 जज हैं.”

ये व्यवस्था है हमारे सुप्रीम कोर्ट की. देश के हाईकोर्ट्स की बात करें तो यहां सिर्फ दो जज दलित समुदाय से हैं और आदिवासी जज यहां भी शून्य हैं. सबसे बड़ी बात कि उत्तर भारत की तीन सबसे बड़ी जातियों यानि यादव, कुर्मी और कुशवाहा जाति का एक भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं बन सका है. लगभग आधे से ज्यादा जज ब्राह्मण जाति से बने हैं. अक्सर आपने देखा होगा कि हर सिस्टम में हितों का टकराव होता है. अपनी जाति के लोग अपनी ही जाति के लोगों से एक खास सहानुभूति रखते हैं. उन पर हुए अत्याचार को सुनते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में तो दलितों और आदिवासियों की सुनने वाला ऐसा एक भी जज नहीं है. जब जज नहीं है तो कौन सुनेगा?

सुप्रीम कोर्ट के इस बयान से पहले उच्च जाति के दबंग लोगों में एक डर था कि अगर किसी को गाली दी, या किसी दलित-आदिवासी को जातिगत रुप से अपमानित किया तो SC-ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हो जाएगा. लेकिन कोर्ट के इस बयान के बाद ऐसे लोगों को एक बल मिला है. एक तरकीब मिली है. कि घर में घुसकर किसी दलित-आदिवासी पर अत्याचार करेंगे तो कोई सुनेगा नहीं. और कोई सुनेगा नहीं तो SC-ST एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हो पाएगी. और घर में मौजूद लोग सुन लेंगे तो होगा भी क्या! अदालत तो इनके बयान को मानेगी ही नहीं.

अब सवाल ये उठता है कि क्या घर के भीतर हो रहे अत्याचार को कोई बाहरी देखने जाएगा? या ज्यादती होने से पहले कोई दबंग किसी बाहरी को बुलाने का मौका देगा कि फलाने को बुला लो. उसके सामने ही गाली देंगे.

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