Atal ke BJP aur Maujooda BJP me kya Badla

Moliitcs
3 min readAug 8, 2019

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‘चरित्र’ की कमजोर भाजपा, ‘लक्ष्य की मजबूत’ है !

‘अपने लक्ष्य पर डटे रहना बड़ी बात है’

पिछले दिनों एक खत मिला और उसमें यही बात लिखी थी. फिर तुम्हारा लक्ष्य बाल हो, बारू हो या फिर लादेन ही क्यों नहीं. बस डेट रहो और निशाना साधो.

फिर जीत मिले या हार मिले
इसपर कोई ऐतबार नहीं
राह तुम कोई चुनों, बस डटे रहो
फिर देखो, तुम जैसा कोई मझधार नहीं.

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370 हटाने के बाद लोग कश्मीर पर चर्चा कर रहे हैं. किसी की तीखी टिपण्णी है, तो कोई व्यंग कर रहा और बचे-खुचे ‘ललकार’ रहे हैं. 5 अगस्त 2019 को जो भी हुआ उसपर टिपण्णी करना और अपनी राय रखना मैं नादानी, नासमझी और बचकानी हरकत से तौलता हूँ. इसलिए मैं लेख में कश्मीर के संदर्भ में ‘मौजूदा भाजपा’ की बात करूँगा. चर्चे में कश्मीर ज़रूर होगा लेकिन विषय केंद्रित भाजपा पर होगा.

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‘भाजपा’ पर ही क्यों ?

दरसल हमने वो दौर देखा. जब भाजपा राम मंदिर और कश्मीर को लकेर आगे बढ़ती रही, कांग्रेस को दोबारा सरकार बनाते देखा फिर केजरीवाल को उगते और फिसलते देखा. उसके बाद मोदी लहर और अब दोबारा भाजपा की सरकार देख रहे हैं. इस दौरान कई चीजे हुई. कई सुर बदले और बिखरे. लेकिन कोई तो था जो ‘अस्थाई’ नहीं था ठीक 370 की तरह. बल्कि उसका निशाना एक ही जगह टिका हुआ था. तो वो थी, भाजपा. इसलिए विषय केंद्रित भाजपा पर ही रहेगा.

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‘भाजपा’ ही थी जो डटी रही !

देखा जाए तो अटल वाले भाजप से मौजूदा भाजपा में बहुत बदलाव हुआ. अटल जबान के तेज थे और शाह दिमाग के हैं. अटल संसद में लड़कर जीतने की छमता रखे थे और अमित लड़ाकर जीतना जानते हैं. अटल इतिहास के दमपर आवाज उठाते थे और अमित इतिहास को खत्म कर आवाज दबाना जानते हैं. अटल सत्ता के भूखे नहीं थे, अमित सत्ता से भूख मिटाते हैं. इतना बदलाव हुआ राम मंदिर वाले आंदोलन से निकले भाजपा और मौजूदा भाजपा में लेकिन ‘लक्ष्य’ अभी भी वही है !

राम मंदिर वही बनाएँगे, 370 भी हटाएंगे.

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‘केजरी’ कमाल कर सकता था !

जनता महंगाई से जूझ रही थी. कांग्रेस की दूसरी सरकार घोटालों से घिरी थी. तभी एक गुट राजनीती में आती है. जनता उम्मीद की किरण मान उसके साथ चलने को तैयार हो जाती है. आम आदमी पार्टी के पास भी एक मौका था राजनीति बदलने का, युवाओं के लिए मिसाल पेश करने का, की सच और सही तरीके से भी राजनीति की जा सकती है. उम्मीदन केजरीवाल ने सरकार बनने के बाद ‘विकास’ की असल तस्वीर तो दिखाई लेकिन जिस शिला दीक्षित के सामने वो लड़े, उनको हराया और विधानसभा से बहार का रास्ता दिखाया. लोकसभा के दौरान ऐसी क्या नौबत आ गयी की उसी कांग्रेस के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा, जिस सिस्टम के खिलाफ लड़कर वो खड़े हुए थे.

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और आज ‘कश्मीर’ पर सहमति जताई. मैं यह नहीं कह रहा की केजरीवाल गलत हैं या सही लेकिन अपने ‘लक्ष्य’ पर टिकने वाले नहीं हैं. यह तो उन्होंने साबित कर दिया. क्योंकि जो व्यक्ति खुद ‘पूर्ण राज्य’ की लड़ाई लड़ रहा हो और फिर वो किसी प्रदेश को विभाजित कर ‘केंद्र शाषित प्रदेश’ बनाने के आदेश का समर्थन करे तो वो ज़रूर उन्हीं चाचियों की हरकतों जैसा है, जो अपने बेटे के खरोच को ज़ख्म और दूसरे के बच्चे के ज़ख्म को ‘जरा सा खरोच’ में आंकती हैं.

पहले कालिख, फिर अंडे और अब थूक चाटने चल दिए केजरीवाल !! धिक्कार है

इसलिए देश में कोई पार्टी अपने विचारो, सिद्धांतों व लक्ष्य पर अडिग है तो वो भाजपा ही है. फिर फैसला सही हो या गलत, तानाशाही हो या परिणाम नरसंहार. टिके रहे, अड़े रहे और डटे रहे.

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