असम में भाजपा प्रत्याशी की गाड़ी में EVM खुद ही जाकर बैठी या किडनैप हुई?
असम में भाजपा और ईवीएम के पुराने रिश्ते की एक नई कहानी सामने आई है। इस कहानी में चुनाव आयोग फूफा बनकर अपना पक्ष रखने आए लेकिन अब फंस गए हैं। ऐसे फंसे की लोग मजे लेने लगे। अब चुनाव आयोग को गुस्सा आ जाए उससे पहले ये पूरा मामला जान लीजिए।
1 अप्रैल को असम में दूसरे चारण की वोटिंग हुई। शाम को पथरकंडी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की कार में ईवीएम मिली। इस मामले से जुड़ा वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ विपक्ष ने हंगामा कर दिया। प्रियंका गांधी, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, नितिन राउत ने भाजपा पर निशाना साधना शुरु कर दिया। इसीबीच सामने आया चुनाव आयोग का बयान।
उम्मीद थी कि चुनाव आयोग कह देगा कि ये रिजर्व्ड बॉक्सेस थे जिसका मतदान से कोई मतलब नहीं। लेकिन इसबार स्क्रिप्ट में चेंज था। और फिर एक ही बात बार-बार बोलेंगे तो जनता को उनके निष्पक्ष होने पर भरोसा कैसे रहेगा। सो उन्होंने कहा- ईवीएम लेकर निकले तो रास्ते में गाड़ी खराब हो गई, लिफ्ट मांगा तो एक बोलेरो रुकी और हम उसी के जरिए आगे बढ़े। हमें नहीं पता था की वो गाड़ी भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की है।
कई लोग ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का मजाक बनाते हैं लेकिन इसका उत्तर नहीं दे पाते कि हरबार ईवीएम भाजपा नेताओं की गाड़ियों में क्यों मिलती है। उसमें तकनीकी गड़बड़ी होती है तो भाजपा को ही फायदा क्यों मिलता है। अगर आपने ईवीएम के विरोध का मतलब भाजपा का विरोध समझ लिया है तो कहीं न कहीं ये बात स्वीकार करते हैं कि भाजपा ईवीएम के भरोसे जीत रही है। हरियाणा में तो भाजपा नेता बख्शीश सिंह विर्क ने कह भी दिया था कि ईवीएम में आप कोई भी बटन दबाओ वोट तो कमल पर ही जाएगा।
2019 में द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग के लिए ईवीएम बनाने वाली कंपनी ECIL ने ईवीएम और वीवीपैट की देखरेख के लिए मुंबई की एक फर्म M/s T&M Services Consulting Private Limited से कन्सल्टिंग इंजीनियर लिए। मतलब साफ है कि ईवीएम तक प्राइवेट इंजीनियर्स की पहुंच थी। अब चुनाव आयोग की वेबसाइड पर जाएंगे तो इस कंपनी की मदद संबंधी कोई भी जानकारी नहीं मिलेगी। ऐसा क्यों किया गया इसके बारे में कुछ नहीं पता।
जिन इंजीनियरों को ईवीएम की देखरेेख की जिम्मेदारी मिली जब उनसे क्विंट ने बात की तो पता चला कि उन्हें ईवीएम देखरेख के लिए क्रैश कोर्स करवाया गया और उसके बाद इसकी जिम्मेदारी मिली। लेकिन इस मामले पर जब चुनाव आयोग से बात की गई तो वह कुछ भी बताने से साफ मना कर गई। अब ये आपके ऊपर है कि आप इलेक्शन कमीशन को स्वतंत्र मानते हैं या फिर मानते हैं कि इसपर किसी तरह का दबाव है।
आखिरी बात. ईवीएम पर देश की बड़ी आबादी को भरोसा नहीं है। भाजपा को छोड़ दें तो सभी दलों ने इसका विरोध किया है। दुनिया के जिन विकसित देशों ने इसे बनाया उन्होंने ही इसे त्याग दिया और बैलेट पेपर पर आ गए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां एक पार्टी को इससे फायदा हो रहा है। चुनाव आयोग को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जनता को संतुष्ट करने की जिम्मदारी चुनाव आयोग की है। व्यक्ति जिसे वोट दे उसे ही जाए तो तो बेहतर होगा।
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